होली के दूसरे दिन से ही गणगौर का त्योहार आरंभ हो जाता है जो पूरे 18 दिनों तक लगातार चलता रहता है। महिलाएं गणगौर पर्व के पहले दिन की सूबह ही गाती-बजाती हुईं होली की राख अपने घर ले जाती है। मिट्टी गलाकर उससे सोलह पिंडियां बनाईं जाती है। साथ ही दीवार पर सोलह बिंदियां कुंकुम की, सोलह बिंदिया मेहंदी की और सोलह बिंदिया काजल की प्रतिदिन लगाई जाती है। गणगौर का व्रत केवल सुहागिन स्त्रियां ही नहीं करती बल्कि कुंवारी लड़कियां मनपसंद वर की कामना करते हुए इस व्रत और पूजा को करती है। विवाहित महिलाएं अपने पति की दीर्घायु की कामना करती हैं। गणगौर पर्व के सभी दिन मां पार्वती की स्तुति का सिलसिला चलता रहता है। अंतिम दिन भगवान शिव की प्रतिमा के साथ सुसज्जित हाथियों, घोड़ों का जुलूस और गणगौर की सवारी निकाली जाती है जो आकर्षण का केंद्र बन जाती ही हैं।
राजसमन्द जिले के गढ़बोर में स्थित रिछेड गाँव में स्थित आमज माता के मंदिर में ज्येष्ठ नवमी को आयोजित होता हैं|
राजसमंद पंचायत समिति की ओर से नवरात्रि के मौके पर कुंवारिया कस्बे में जोहिड़ा भैरव जी का विशाल पशु मेला आयोजित किया जाता है | रोजाना मेले में हजारों की संख्या में लोग शामिल होते हैं | इस दौरान मेले में आकर्षक साज-सज्जा की जाती है | रात के वक्त पूरा मेला परिसर रोशनी से नहा जाता है. आकर्षक सजावट होने से रात के वक्त मेले की रौनक और बढ़ जाती है. मेले मे डोलर, चकरी, खाद्य सामग्री, श्रृंगार की वस्तुएं, ऊनी वस्त्रों के बाजार और तरह-तरह के मनोरंजन के साधन उपलब्ध है. मेले में हर वर्ष गाय और भैंस के अलावा उन्नत नस्ल के घोड़े, बकरियां और भेड़े भी बिकने के लिए आती है | जिसमे पशु धन की जोरदार आवक और खरीदी होती है | साथ ही मेले में आने वाले किसानों और व्यापरियों के साथ ही अन्य नागरिकों को मनोरंजक कार्यक्रम का आयोजन प्रतिदिन किया जाता है |